आनंद बख्शी साहब, जावेद अख्तर साहब और कलम की कहानी

आनंद बख्शी जिनका नाम सुनते ही हजारो, सैकड़ो गाने जहन मे गुजने लगते है | अपनी बात को सीधे और सरल भाषा मे कहना बख्शी साहब की ही कला थी , एक समय तो ऐसा आया था की लगभग सभी बड़ी फिल्मो के गाने बख्शी साहब ही लिख रहे थे | जो भी डायरेक्टर, प्रोडूसर उनसे जुड़ा, जुड़ता ही चला गया…. बख्शी साहब के बारे मे ओर बहुत बाते शेयर करुगा, लेकिन फ़िलहाल कलम की कहानी, यादो का सिनेमायी सफर मे आप का स्वागत है…

ऐसा क्या हुआ की जावेद अख्तर साहब ने बख्शी साहब की कलम मांगी, लकिन वो कलम बख्शी साहब देने से मना कर गए, लकिन जावेद अख्तर साहब को बख्शी साहब ने दूसरी कलम गिफ्ट मे दी |

साल 1974 मे एक फिल्म आयी थी, “आप की कसम” जो की जय ओम प्रकाश साहब की पहली Produce & Directed डायरेक्ट करी हुई फिल्म थी,
जिसके गाने लिखे थे बख्शी साहब इसका एक गाना आप सभी ने सुना होगा “जिन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम….” ये गाना जावेद अख्तर साहब को बहुत पसंद आया.. ये मुझे भी बहुत पसंद है..इस गाने की एक एक लाइन अपने आप मे कुछ कहती है, जैसे वो लाइन “आदमी ठीक से देख पाता नहीं और परदे पे मंजर बदल जाता है…. ” इस गाने धुन बनाई थी राहुल देव बर्मन नाम छोटा कर के बोले तो पचंम एक ओर नाम आ गया इनके बारे बहुत बाते शेयर करुगा, लेकिन फ़िलहाल कलम की कहानी

जब जावेद अख्तर साहब एक फंक्शन मे बख्शी साहब से मिले तो उन्होंने बख्शी साहब से कहा की मुझे वो कलम (पेन) चाहिए, जिससे ये गाना (जिन्दगी के सफ़र में……. ) लिखा |

इस पर बख्शी साहब बोले मे आप को ये कलम दे देता लकिन ये पेन तो मुझे आशा जी ने गिफ्ट करा है आप को दे दुगा तो उनको बुरा लगेगा ये कलम आप को नहीं दे सकता लकिन आप मे एक दूसरा कलम गिफ्ट मे दुगा, ओर जावेद साहब को बख्शी साहब ने बाद मे एक कलम भेट की..

आनंद बख्शी भौजी आदमी थे टाइम के बड़े पाबंद, नहीं अभी नहीं अभी बख्शी साहब के बारे मे ओर बहुत बाते शेयर करुगा फ़िलहाल दीजिए इज़ाजत….. धन्यवाद जय हिन्द

आप को ये किस्सा केसा लगा आप निचे कमेटं बॉक्स मे लिख सकते हो….

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